'जीवन एक अनुभूति' ब्लॉग को मैंने अभी लिखना शुरू ही किया कि अपनों से मिलने वाली शुभ कामनाओं और उनके प्यार से में अभिभूत हो गयी हूँ। मैंने इस ब्लॉग को लिखने का निर्णय किया है परन्तु मेरे अन्दर जो कुछ है उसे मैं कैसे एक आकार दूँगी इसे मैं अभी समझ नहीं पायी हूँ।
मेरे हाथ में आज कलम नहीं है, एक कीबोर्ड है जिसे मैंने अभी कुछ दिनों पूर्व ही चलाना सीखा है। कंप्यूटर का उपयोग इसके पूर्व मैंने केवल गेम खेलने के लिए ही किया था और इन्टरनेट का प्रयोग बच्चों से बात करने के लिए। आज मुझे अभिव्यक्ति के एक सशक्त मध्यम के रूप में गूगल का यह उपहार मिला है। मैं अभिव्यक्ति के इस नवीन मध्यम को पा कर बहुत उत्साहित हूँ।
न जाने कितने सालों पूर्व मैंने लिखना छोड़ दिया था पर अब मैं फिर से कुछ लिखना चाहती हूँ। मैं अपनी बातें अपने पाठकों को बताना और उनकी बातें सुनना, जानना चाहती हूँ। एक समय था जब हर पल एक ही धुन लगी रहती थी कि कुछ नया लिखना है...कुछ नयी बातें अपने पाठकों से करनी है...कुछ नए प्रगतिशील विचार अपने पाठकों के सामने लानी हैं। दिनभर उठते-बैठते, सोते-जागते एक ही धुन लगी रहती थी...कुछ नया काम, कुछ नयी रचनाएँ , कुछ नया सृजन...बस कुछ नया...! हाथ में एक लेखनी थी, अभिव्यक्ति का एक माध्यम- समाचार पत्र था। और क्या चाहिए एक रचनाकार और सृजनशील मानस को?
पर हर व्यक्ति को उसका मनचाहा सब-कुछ नहीं मिल सकता। अभिव्यक्ति का जो माध्यम हाथ में था वह अविश्वसनीय रूपसे छीन लिया गया। लिखने की इच्छा ही समाप्त हो गयी थी। पर आज बरसों बाद, अपने देश से इतनी दूर...अमेरिका के एक छोटे से शहर में, मैं रचना की प्रक्रिया से पुनः जुड़ गयी हूँ। मैं चकित तो हूँ पर बहुत खुश भी हूँ।
अपने छोटे बेटे प्रवीण के एक प्रयास से मैं, अपनी नन्हीं-सी प्यारी पोती दिवा के लिए, फिर से जी उठी हूँ। दिवा के साथ मैं सबसे बातें कर सकूँ, सबके साथ अपने जीवन के कुछ पल बाँट सकुनौर आप सबके प्यार, विश्वास के साथ कुछ नया कर सकूँ - यही मैं ईश्वर से कामना करती हूँ।